Dadaguru Iktisa ( दादागुरु इकतीसा )

संगीतमय इकतीसा | इकतीस गाथा - इकतीस राग | साभार - श्री यतीन्द्र जी जैन कटंगी (म. प्र.) द्वारा

दासानुदासा इव सर्व देवा, यदीय पादाब्जतले लुठंति।
मरूस्थली-कल्पतरु-सजीयात्, युग प्रधानो श्री जिनदत्तसूरि:।।

श्री गुरुदेव दयाल को, मन में ध्यान लगाए | अष्टसिद्धि नवनिधि मिले, मनवांछित फल पाए ||

श्री गुरु चरण शरण में आयो, देख दरश मन अति सुख पायो | दत्त नाम दुःख भंजन हारा, बिजली पात्र तले धरनारा ||
उपशम रस का कंद कहावे, जो सुमिरे फल निश्चय पावे | दत्त संपत्ति दातार दयालु, निज भक्तन के हैं प्रतिपालु ||

बावन वीर किए वश भारी, तुम साहिब जग में जयकारी | जोगणी चौंसठ वश कर लीनी, विद्या पोथी प्रकट कीनी ||
पांच पीर साधे बल कारी, पंच नदी पंजाब मजारी | अंधो की आंखें तुम खोली, गूंगों को दे दीनी बोली ||

गुरु वल्लभ के पाठ विराजो, सूरिन में सूरज सम साज़ो | जग में नाम तुम्हारो कहिए, परतिख सुर तरु सम सुख लहिये ||
इष्ट देव मेरे गुरुदेवा, गुणी जन मुनि जन करते सेवा | तुम सम और देव नहीं कोई, जो मेरे हित कारक होई ||

तुम हो सुर तरु वाँछित दाता, मैं निशदिन तुम्हरे गुण गाता | पार ब्रह्म गुरु हो परमेश्वर, अलख निरंजन तुम जगदीश्वर ||
तुम गुरु नाम सदा सुख दाता, जपत पाप कोटि कट जाता | कृपा तुम्हारी जिन पर होई, दुःख कष्ट नहीं पावे सोई ||

अभय दान दाता सुखकारी, परमातम पूरण ब्रह्मचारी | महा शक्ति बल बुद्धि विधाता, मैं नित उठ गुरु तुम्हें मनाता ||
तुम्हारी महिमा है अति भारी, टूटी नाव नई कर डारी | देश देश में थंभ तुम्हारा, संग सकल के हो रखवाला ||

सर्व सिद्धि निधि मंगल दाता, देवपरी सब शीश नमाता | सोमवार पूनम सुखकारी, गुरु दर्शन आवे नर नारी ||
गुरु छलने को किया विचारा, श्राविका रूप जोगणी धारा | कीली उज्जयनी मझधारा, गुरु गुण अगणित किया विचारा ||

हो प्रसन्न दीने वरदाना, सात जो पसरे महि दरम्याना | युग प्रधान पद जनहित कारा, अंबड मान चूर्ण कर डारा ||
माता अंबिका प्रकट भवानी, मंत्र कलाधारी गुरु ज्ञानी | मुग़ल पूत को तुरत जिलाया, लाखों जन को जैन बनाया ||

दिल्ली में पतशाह बुलावे, गुरु अहिंसा ध्वज फहरावे | भादो चौदस स्वर्ग सिधारे, सेवक जन के संकट टारे ||
पूजे दिल्ली में जो ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे | ऐसे दादा साहब मेरे, हम चाकर चरणन के चेरे ||

निशदिन भैरु गोरे काले, हाजिर हुकुम खड़े रखवाले | कुशल करण लीनो अवतारा, सतगुरु मेरे सानिध कारा ||
डूबती जहाज भक्त की तारी, पंखी रूप धर्यो हितकारी | संग अचंभा मन में लावे, गुरु तब शुभ व्याख्यान सुनावे ||

गुरु वाणी सुन सब हरखावे, गुरु भव तारण तरण कहावे | समय सुंदर की पंच नदी में, फट गई जहाज नई की छिण में ||
अब है सदगुरु मेरी बारी, मुझे सम पतित ना और भिखारी | श्री जिन चंद्र सूरी महाराजा, चौरासी गच्छ के सिर ताजा ||

अकबर को अभक्ष्य छुड़ायो, अमावस को चांद उगायो | भट्टारक पद नाम धरावे, जय जय जय जय गुणी जन गावे ||
लक्ष्मी लीला करती आवे, भूखा भोजन आन खिलावे | प्यासे भक्त को नीर पिलावे, जल धर उण वेला ले आवे ||

अमृत जैसा जल बरसावे, कभी काल नहीं पड़ने पावे | अन धन से भरपूर बनावे, पुत्र-पौत्र बहू संपत्ति पावे ||
चामर युगल ढुले सुखकारी, छत्र किरणिया शोभा भारी | राजा राणा शीश नमावे, देव परी सब ही गुण गावे ||

पूरब पश्चिम दक्षिण तांईं, उत्तर सर्व दिशा के माहीं | ज्योति जागती सदा तुम्हारी, कल्पतरु सतगुरु गण धारी ||
श्री विजय इंद्र सूरीश्वर राजे, छड़ी दार सेवक संघ साजे | जो यह गुरु इकतीसा गावे, सुंदर लक्ष्मी लीला पावे ||

जो यह पाठ करे चित लाई, सतगुरु उनके सदा सहाई | वार एक सौ आठ जो गावे, राजदंड बंधन कट जावे ||
संवत आठ दोय हज्जारा, आसो तेरस शुक्करवारा | शुभ मुहूर्त वर सिंह लग्न में, पूरण कीनो बैठ मगन में ||

सतगुरु का स्मरण करे, धरे सदा जो ध्यान | प्रातः उठी पहिले पढ़े, होय कोटी कल्याण ||
सुनो रतन चिंतामणि, सतगुरु देव महान | वंदन श्री गोपाल का, लीजे विनय विधान ||

चरण शरण में मैं रहूं, रखियो मेरा ध्यान | भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान ||
भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान | भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान ||