प्रथम दादा | द्वितीय दादा | तृतीय दादा | चतुर्थ दादा | |
श्री जिनदत्त सूरी | मणिधारी श्री जिनचंद्र सूरी | श्री जिनकुशल सूरी | श्री जिनचंद्र सूरी | |
जन्म संवत् | 1132 | 1197 | 1337 | 1585 |
जन्म स्थल | धोलका | विक्रमपुर | गढ सिवाणा | खेतसर |
जन्म नाम | सोमचन्द्र | सूर्य कुमार | करमण | सुलतान |
माता का नाम | वाहडदेवी | देल्हणदे | जैत श्री | श्रियादेवी |
पिता का नाम | वाछिगशाह मंत्री | राशल | जेसल | श्री वन्त |
गोत्र | हुंबड | महतीयाण | छाजेड | रीहड |
दीक्षा संवत् | 1141 | 1203 | 1347 | 1604 |
गुरु का नाम | श्री जिन वल्लभ सूरि | श्री जिन दत्त सूरी | कलिकाल केवली जिन चंद्र सूरी | श्री जिन माणिक्य सूरी |
आचार्य पद संवत् | 1169 | 1205 | 1377 | 1612 |
स्वर्गारोहण तिथि | आषाढ़ शुक्ल 11 | भाद्रपद कृष्ण 14 | फ़ाल्गुन् कृष्ण 30 | अश्विन कृष्ण 2 |
स्वर्गारोहण संवत् | 1211 | 1223 | 1389 | 1670 |
स्वर्गारोहण भूमि | अजमेर | दिल्ली | देराउर | बिलाडा |
About Khartar Gachha Acharya - Dada Gurudev ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Form the origin of Jain religion, many saint and monk exist, but mostly the four aachraya have honor to be called and worship as Dada Gurudeva. Dada Gurudev mean supreme teacher and deity. The four dada are Shri Jin Datta Suri, Shri Manidhari Chandra Suri, Shri Jin Kushal Suri, Shri Jin Chandra Suri. Dada Jinkushal Suri is great monk in Jain religion especially in Khartar Gaccha. All Dada Gurudeva life is full of miracles, all four Dada show the path of Jainism. Temple of Dada Gurudeva called Dadabadi where millions of devotee worship for getting grace of Dada.
खरतरगच्छ आचार्य दादा गुरुदेव - एक परिचय
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जैन जगत के दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि, मणिधारी दादा गुरुदेव श्री जिनचंद्रसूरि, दादा श्री जिनकुशलसुरि, दादा श्री जिनचंद्रसूरि, ये चार नाम उन महापुरुषों के, जिन्होंने अपनी साधना और पुरुषार्थ के आधार पर जैन शासन की दिशा ही बदल दी।
जैन समाज का हर घटक अपने अन्तर में इन चारों दादा गुरुदेवों के उपकारों के सुगंध का प्रतिफल अहसास करता है।
अपने-अपने समय में हर गच्छ में महान आचार्य बहुत हुए है, किंतु कोई ऐसा आचार्य नहीं, जो इनकी बराबरी कर सके।
यही कारण है कि इन चार महापुरुषों को ही दादा गुरुदेव का विशिष्ट और उपकार भरा संबोधन प्राप्त हुआ। यह संबोधन उन्होंने स्वयं नहीं लिया, न किसी राजा ने दिया, न किसी एक संघ या आचार्य ने दिया! यह संबोधन आम जनसमूह ने परम श्रद्धा से भरकर दिया।
~साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी की पुस्तक "दादा गुरुदेव" से।