दासानुदासा इव सर्व देवा, यदीय पादाब्जतले लुठंति।
मरूस्थली-कल्पतरु-सजीयात्, युग प्रधानो श्री जिनदत्तसूरि:।।
बावन वीर किये अपने वश, चौंसठ जोगिनी पार लगाई,
डाईन साईन व्यन्तर खेचर, भूत अरु प्रेत पिशाच पुलाई ।
बीज़ तड़क भड़क कड़क, अटक रहे ज्यूँ खटक ना काईं,
कहे धर्मसिंह लंथे कृण लिह, दिये जिनदत्त की एक दुहाई ।।
राजे थम्भ ठौर ठौर, ऐसो देव नहीं और,
अपने दादो नाम से, जग़त जस गायो है ।
अपने ही भाव आए, पूजे सक्ख लोक पाये,
प्यासन के रन माये, पानी आन पायो है ।।
बाट दाट शत्रु डाट, हाट पुर पाटण में,
देह नेह मेह गेह से, कुशल बरतायो है ।
धर्मसिंह ध्यान धरे, सबका कुशल करे,
साचो श्री जिनदत्त सूरी, नाम यों कहायो है ।।